मां ने समझाया अपने घर पर
करना पूरी ये सब मन की मुरादें
पिता के घर तो मेहमान है बेटी।
याद कर यह मां की सीख
मुस्कुरा कर आंखें मूंद ली।
अब तो वो अपने घर जाने वाली है
नई खुशियां जीवन को मिलने वाली हैं।
यही सोच कर उसके
पैर ज़मीं पर नहीं थे
मन पंख लगा कर उड़ चला था।
वो सजाएगी हर रंग में
और फैलाएगी अपने पंख
उड़ेगी अपनें वाले आसमां में
करेगी राज किसी के दिल पर
जिंदगी महक उठेगी उस की
हर ख्वाइश हर तमन्ना को मिलेगी मंजिल
महक उठेगा आशियाना
सांस लेगी अपनी मर्ज़ी की।
मगर यह क्या हुआ?
जिंदगी तो सिमट गई एक चारदीवारी में
कमरे से रसोई और रसोई से कमरे में
घर की देख रेख व जिम्मेदारी में।
वक्त तो पंख लगा कर उड़ गया
सारी ख्वाहिशें रह गई दफन
उठ कुछ तो कर आई एक आवाज़…
अब नहीं तो फिर कब
भरेगी रंग अपनें सपनों में
बनाएगी अपना आसमां।
हां अब नहीं तो कब
हां अब नहीं तो कब!
लेखिका: मीना मेहता
Writer: Meena Mehta
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Thank you so much
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Meenaji it’s intense and articulate
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