“मुबारक हो लक्ष्मी हुई है!” यह सुनते ही स्नेहा ने आंखें बंद कर ली। खामोशी की विरानी सी छा गई। मानों सब की उम्मीदों पर पानी फिर गया हो। एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे। लेकिन स्नेहा के अंदर तो एक जंग ही छिड़ गई थी, “नहीं कभी नही!! कभी भी नही अपनी बेटी को अपने जैसी जिंदगी नहीं जीने दूंगी। उसे आत्मनिर्भर बनाऊंगी! कोई जुल्म नहीं सहेगी….. “
क्या आप सब यह जानते हैं कि स्नेहा किस जुल्म का के रही थी? उसकी जिंदगी कैसी थी? और क्यों ऐसी थी? कौन था इसका जिम्मेवार? क्यों वो अपनी बेटी अपने जैसा नहीं बनाना चाहती थी? शायद सब guess कर सकते हैं क्योंकि हर एक की अपनी एक अनकही कहानी है। हर औरत चाहे जिस ने अपने मायके की दहलीज पार की है या नहीं की, अपने मन में छोटा/बड़ा एक आंधी/तूफान छुपाए हुए है। जिसे बाहर निकलने की जरूरत है ताकि वो तकलीफ एक नासूर न बन सके। लेकिन जिम्मेंवारियों को निभाते निभाते या kitty parties में टाइम पास कर के या फिर किसी और काम में ध्यान लगा कर उस दबे तूफान को दबाये रहती है। दबा तूफान कभी भी किसी बीमारी के रूप में आ सकता है। इसलिए इसका समाधान बहुत जरूरी है।
ऐसे कई सवाल हैं, मुद्दे हैं, जिन के उत्तर ढूंढने की जरूरत है। उनके कारण व समाधान पर चर्चा इस वक्त ही मांग है।
सबसे अहम सवाल । क्यों लड़की का जन्म अभी भी बहुत से भारतीय परिवारों में एक प्रश्न चिन्ह जैसा है? क्यों केवल लड़कों के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं? जी हां, Open Up सीरिज में हम ऐसे ही विषयों के लिए शुरू कर रहे हैं। आपके अनुभव, कमेंट्स व सुझावों का इंतजार रहेगा।